महाशिवरात्रिः जानिए कब और कैसे करनी चाहिए पूजा

शास्त्रोक्त और शिवपुराण के रूद्र संहिता के तहत शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मानी जाती है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि का त्यौहार माना जाता है. शिवपुराण के अनुसार श्रवण नक्षत्र युक्त चतुर्दशी व्रत के लिए उचित मानी गई है. जो कि चतुर्दशी तिथि 13 फरवरी को रात में 11:34 से लग रही है साथ ही 14 फरवरी को रात में 12:47 तक है. श्रवण नक्षत्र 14 फरवरी को सुबह 4:56 से शुरू हो रहा है. अतः महाशिवरात्रि 14 फरवरी को ही मनानी चाहिए जो कि श्रेष्ठकर है
महाशिवरात्रि मुहूर्त फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि दिनांक 4 मार्च , 2019 दिन सोमवार  को सामान्य तौर पर प्रातः काल से पूजा शुरू करना चाहिए. इस दिन पूजा सुबह 7 बजे से प्रारंभ करें. जो लोग ब्राह्मण से पूजन कराते हैं, उनके लिए खास पूजा प्रारंभ का समय प्रथम पूजन- सुबह 7 बजे से प्रारंभ करें. द्वितीय पूजन- सुबह 11:15 बजे से प्रारंभ करें. तृतीय पूजन- दोपहर 3:30 बजे से प्रारंभ करें. चतुर्थ पूजन- सायं काल 5:15 बजे से प्रारंभ करें. पंचम पूजन- रात्रि 8 बजे से प्रारंभ करें . षष्ठ पूजन- रात्रि 9:31 बजे से प्रारंभ करें . चार प्रहर पूजन का समय: गोधूलि बेला से प्रारंभ कर के ब्रह्म मुहूर्त तक करना चाहिए. पूजन प्रारंभ के समय प्रथम पूजन कर के विश्राम कर लें नोट: जो यजमान चार प्रहर का पूजन कराते हैं, उनको आचार्य के साथ बैठ कर चारों प्रहर का पूजन करना चाहिए. जिससे उत्तम फल की प्राप्ति होती है. यदि किन्हीं कारणों से यजमान न बैठ पाए तो वह पूजन प्रारंभ के समय प्रथम पूजन कर के विश्राम कर लें. पूर्ण के समय भी यजमान का उपस्थित होना अनिवार्य होता है जिससे फल की प्राप्ति होती है. अगर पूर्ण के समय यजमान उपस्थित नहीं होता है तो उस पूजन का फल यजमान को प्राप्त नहीं होता है. वो फल ब्राह्मण को ही प्राप्त होता है. रात में देवकार्य का सदा उत्तराभिमुख होकर पूजन करना चाहिए. इसी प्रकार शिव पूजन भी सदा पवित्र हो कर उत्तराभिमुख होकर ही पूजन करना चाहिए. पूजन विधि सर्वप्रथम जल से प्रोक्षणी करके अपने ऊपर जल छिड़कें. मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाम् गतो पि वा. य: स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तर: शुचि:. 3 बार आचमन करके हाथ धो लें. आचमन मंत्र: ऊं केशवाय नमः, ऊं माधवाय नमः, ऊं गोविंदाय नमः हाथ धोने का मंत्र: ऊं ऋषि केशाय नमः हस्तो प्रक्षालपम अब स्वस्तिवाचन करें. स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु. इसके उपरांत दीपक प्रज्वलित करें. गौरी-माता पार्वती का स्मरण जरूर करें फिर पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश जी एवं गौरी-माता पार्वती जी का स्मरण कर पूजा करनी चाहिए. यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए. संकल्प करते हुए भगवान गणेश जी व माता पार्वती जी का पूजन करें. फिर नन्दीश्वर जी, वीरभद्र जी, कार्तिकेय जी (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन (रोली, चंदन, सिंदूर, चावल, पुष्प नैवेद्य फल से अलंकृत कर) करना चाहिए. इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें. भगवान शिव का ध्यान करने के बाद उनको आसन प्रदान करे. फिर आचमन कराकर शुद्ध जल से स्नान कराकर, दूध-स्नान दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं. इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) स्नान कराएं. उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं. फिर सुगंधित जल से स्नान कराएं. प्रसाद चढ़ाकर दक्षिणा आरती करें अब भगवान् शिव जी को जनेऊ चढाएं. फिर वस्त्र पहना कर उनको रोली, चंदन, चावल, सप्त धान्य, सुगंध, इत्र, पुष्प, पुष्पमाला, बिल्वपत्र से अलंकृत करें. (महा शिवरात्रि के दिन शिव जी को पुष्पों से ढक कर के अलंकृत नहीं करना चाहिए . इस दिन सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से दिव्य रूप से अलंकृत करें क्योंकि इस दिन शिव जी का विवाह हुआ था. इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं. फिर भगवान् शिव जी को नैवेद्य एवं विविध प्रकार फलों का भोग लगाएं. फल, नैवेद्य के बाद पान, सुपारी लौंग-इलायची, नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें. इसके बाद क्षमा-प्रार्थना करें. क्षमा मंत्र : आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:. इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे. घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं. शिव जी के सभी व्रतों में शिवरात्रि का व्रत सबसे उत्तम बताया गया है. इसलिए भोग और सुख समृद्धि पाने वाले लोग हर मास की शिवरात्रि को व्रत करते और फल प्राप्त करते और इस व्रत का पालन करना चाहिए क्योंकि इस व्रत से जल्दी ही फल की प्राप्ति होती है. निष्काम और सकाम भाव रखने वाले सभी मनुष्यों वर्णों स्त्रियों बालक बालिकाओं आदि सभी देहधारियों के लिए हितकर है. कोई भी व्रत पूर्ण करने से पहले ब्राह्मण भोजन अवश्य कराएं , तभी उस व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है.

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